सत्ता से बाहर होने के करीब पहुंचे इमरान खान, सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश
सत्ता से बाहर होने के करीब पहुंचे इमरान खान, सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश
इस्लामाबाद। अपनी कुर्सी बचाने की हरसंभव कोशिश में जुटे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के सामने वह समय भी आ ही गया, जब नेशनल असेंबली में उनके खिलाफ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष शहबाज शरीफ ने अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया। वर्ष 2018 में पद संभालने के बाद इमरान की यह सबसे कठिन परीक्षा है। इस बीच, विपक्ष ने इमरान के करीबी और पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव सौंप दिया है।
इसलिए बुजदार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव
बुजदार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव जल्दबाजी में लाया गया, ताकि प्रधानमंत्री के हटाए जाने पर पंजाब विधानसभा को भंग करने की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) सरकार की योजना को विफल किया जा सके। उधर, विपक्ष की योजना को विफल करने के उद्देश्य से पंजाब के सीएम बुजदार ने पीएम इमरान को इस्तीफा सौंप दिया और पीटीआइ ने प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के तौर पर गठबंधन के सहयोगी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-कायद (पीएमएल-क्यू) के प्रमुख चौधरी परवेज इलाही के समर्थन का एलान कर दिया।
सदन में 10 विधायक
हालांकि, विपक्षी दलों ने भी पीएमएल-क्यू को समान प्रस्ताव दिया है, जिसके सदन में 10 विधायक हैं। दो दिनों के अवकाश के बाद सोमवार को जब सत्र की शुरुआत हुई, तब डिप्टी स्पीकर कासिम खान सुरी ने संसद के उन सदस्यों को खड़ा होने के लिए कहा जो अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में हैं। इससे पहले शरीफ ने संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की मांग की, जिसके पक्ष में 161 मत पड़े। इसके साथ अविश्वास प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई और पहले चरण की वैधानिक कार्यवाही भी शुरू हो गई।
सत्र 31 मार्च तक के लिए स्थगित
स्पीकर असद कैदर की अनुपस्थिति में डिप्टी स्पीकर सुरी ने सत्र को 31 मार्च शाम चार बजे तक के लिए स्थगित कर दिया। जब सत्र की फिर से शुरुआत होगी, तब अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा व मतदान होगा। माना जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान तीन से सात दिनों के भीतर हो सकता है।
अविश्वास प्रस्ताव पर 31 मार्च को विचार
गृह मंत्री शेख राशिद ने मीडिया से कहा कि अविश्वास प्रस्ताव पर 31 मार्च को विचार हो सकता है। उन्होंने दावा किया कि इमरान कहीं नहीं जा रहे। अविश्वास प्रस्ताव को पाकिस्तान को कमजोर करने की साजिश करार देते हुए राशिद ने कहा, 'लोगों को इस विचार से बचना चाहिए कि इमरान राजनीति के हाशिए पर आ गए हैं। खासकर, एक दिन पहले इस्लामाबाद की बड़ी रैली के बाद।'
अंतरराष्ट्रीय साजिश का दिया हवाला
उन्होंने रविवार की रैली में इमरान की तरफ से लगाए गए आरोपों को दोहराया कि अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत पाकिस्तान सरकार को गिराने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, उन्होंने इमरान को मिले लिखित पत्र की जानकारी से इन्कार किया, जिसमें विदेश से धन आने और कुछ पीटीआइ सदस्यों के सरकार को गिराने के प्रयास में शामिल होने के साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं।
पंजाब विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग
उधर, विपक्षी दल पीएमएल-एन और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की तरफ से 52 वर्षीय बुजदार के खिलाफ सौंपे गए अविश्वास प्रस्ताव पर 127 विधायकों के हस्ताक्षर हैं। इसमें पंजाब विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग की गई है, ताकि अविश्वास प्रस्ताव को सदन में रखा जा सके।
लगाए यह आरोप
उक्त प्रस्ताव में आरोप है कि मुख्यमंत्री ने पिछले साढ़े तीन वर्षों के दौरान लोकतंत्र की भावना के विपरीत काम किया है। पीएमएल-एन के विधायक राणा मशहूद ने कहा कि विपक्ष नेशनल असेंबली के स्पीकर असद कैसर और सीनेट के चेयरमैन सादिक संजरानी के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाएगा।
इमरान को होगी 172 मतों की जरूरत
इमरान को अविश्वास प्रस्ताव गिराने के लिए 342 सदस्यीय नेशनल असेंबली में 172 मतों की जरूरत होगी। सत्तारूढ़ पीटीआइ गठबंधन के सहयोगी दलों के 23 सदस्यों को लेकर अनिश्चितता बरकरार है, वहीं पीटीआइ के 155 में से करीब दो दर्जनों सदस्यों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
100 से ज्यादा सांसदों ने सौंपा था प्रस्ताव
विपक्ष के 100 से ज्यादा सांसदों ने आठ मार्च को इमरान के खिलाफ अविश्वास सौंपा था। 14 दिनों की तय अवधि के तीन दिन बाद 25 मार्च को सत्र बुलाई गई, लेकिन उस दिन प्रस्ताव पेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी।
इमरान ने खुद को जुल्फिकार अली भुट्टो से जोड़ा
इमरान ने खुद को पीपीपी के संस्थापक अध्यक्ष जुल्फिकार अली भुट्टो से जोड़ते हुए दावा किया कि उन्हें देश को स्वतंत्र विदेश नीति देने के प्रयासों के कारण फांसी पर लटकाया गया था। इमरान ने रविवार को जनसभा में एक पत्र लहराते हुए दावा किया था कि उनकी सरकार के खिलाफ विदेशी साजिश हो रही है और स्वतंत्र विदेश नीति को लेकर उन पर दबाव बनाया जा रहा है।